अहसास रिश्‍तों के बनने बिगड़ने का !!!!

एक चटका यहाँ भी

नमस्कार आप सब को ! पंकज की तरफ से .

कल बोदूराम के बारे में आपने पढा था कि किस तरह उनको बिजनेश में घाटा लगा था अब आगे पढिये .
आज सुबह से ही बोदूराम के घर काफी लोगो को आते जाते देखा था . मै सोचा आज क्या हो गया जो बोदूराम के यहाँ इतने लोग जा रहे है .


मै एक लड़का जो कि लगभग १७ साल का था बुलाया और पूछां कि तुम बोदूराम के यहाँ क्या कर रहे हो , वो लड़का बोला कि ट्रेनिंग लेने आये है .
मै बोला किस बात का .
बोला आर्थिक आजादी योजना का .

मै बोला ये कौन सी योजना है?


लड़का बोला बोदूराम जी ने कहा है तुझे जो कोई पूछे तो सिर्फ इतना ही बताना है आगे कि जानकारी के लिए मुझसे मिलने के लिए बोलो .

मै बोला ठीक हो आप जाओ मै बोदूराम से ही पूछ लेता हूँ.
मै गया बोदूराम के घर तो क्या देखता हूँ कि बोदूराम हाथ में चाक लेकर ब्लैक बोर्ड पर कुछ गणीत बता रहे
थे .

मै भी कुछ देर पीछे खडा रहा .
बोदूराम ने बोलना शुरू किया - दोस्तों मै बोदूराम शुरुआत में काफी मुस्किले झेला हूँ तब जाकर आज यहाँ पहुचा हूँ

अच्छा आप लोग ये बताओ , आप को कौन सा मोबाइल अच्छा लगता है .?
आवाज आयी - नोकिया ९५


बोदूराम - गाडी ?
आवाज आयी - सेंट्रो कार.
बोदूराम- रेल का सफ़र या हवाई जहाज का ?
आवाज आयी - हवाई जहाज .
बोदूराम - अब आप लोग ये जान लो अगर आज की तारीख में तुम्हे ये सब सपने पूरे करने हो तो कितने पैसे लगेगे . सारा ऐश आराम करने के लिए लगभग एक करोड .

आप में से नौकरी करके कितने लोग एक करोड़ कमाँ सकते है हाथ उठाइये .
भीड़ में से कोई जवाब नहीं आया .
बोदूराम- क्या आपके घर की परिस्थिती इतनी अच्छी है कि एक करोड़ कमाने लायक बिजनेश डाल सको ?
फिर से कोई आवाज नहीं .
बोदूराम - आप लोग निराश मत होइए मेरे पास तरकीब है एक साल में करोडपती बनाने का .

और वो भी सिर्फ आठ हजार के लागत में .
आज आप मिलिए हमारे मित्र सैम से जो कि ताऊ आश्रम में रहते ही . इन्होने खुद अब तक लाखों कम चुके है . इस बिजनेश में
मै
सैम को यहाँ आमंत्रीत करता हु .

सैम खडा हुआ - दोस्तों नमस्कार , वैसे तो मेरे पास पैसो कि कमी नहीं है क्युकी मै ताऊ जी का चेला हु लेकिन फिर भी मै अपने दम पर कुछ करना चाहता हु और बोदूराम भाई ने हमारी भरपूर मदद की है इसमे . आज हमारे पास सब कुछ है यहाँ आने के लिए मै प्लेन का सहारा लिया . ये देखिये ये मेरा कमाई का चेक है जो कि मै इस बिजनेश से कमाया हूँ .
इतना कहकर सैम ने ढेर सारा डी.डी निकाल सबको दिखा दिया .
सारे लोगो में एक आशा की चमक देखकर बोदूराम बोला
आप लोग कल इसी समय आइये मै आगे का बात बताउगा किस तरह पैसे कमाना है .

सारे बच्चे चले गए तो मै बोदूराम के पास पहुचा और पूछा कि भाई आखिर चक्कर क्या है ?
बोदूराम बोले - पंकज जी चक्कर ऐसा है कि ना तो हर्रे लगे ना फिटकरी , और मिल जाएगा लाखो .
मै बोला भाई उनको तो तं एक करोड़ देने वाले हो तो तुम्हारी लाखों केसे ?
बोदूराम - आज नहीं कल बताउगा .

मै बोला मुझे तो बताओ मै कौन सा बाहर का बन्दा हूँ ?

बोदूराम - मै नहीं चाहत कि मेरी फिल्म रीलिज होने के पहले डब हो जाए .



10 comments:

  1. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' on September 12, 2009 at 5:52 AM

    "आर्थिक आजादी बोदूराम का नया बिजनेश !"
    बोदूराम सोच रहा है-"मैं कहाँ फँस गया हूँ"

     
  2. संजय तिवारी on September 12, 2009 at 6:45 AM

    आपकी लेखन शैली का कायल हूँ. बधाई.

     
  3. Himanshu Pandey on September 12, 2009 at 7:14 AM

    "मै नहीं चाहत कि मेरी फिल्म रीलिज होने के पहले डब हो जाए ."

    सही है पंकज भाई ! बोदूराम की पूरी ओरिजिनेलिटी बची रहनी चाहिये ही । अपने आप में मौलिक चरित्र हैं माननीय ।

     
  4. Arvind Mishra on September 12, 2009 at 8:23 AM

    बोदूराम तो छाते जा रहे हैं -अब बरसात भी रुखसत हो चली है नहीं तो छाते के धंधे में भी वे हाथ आजमा सकते थे !

     
  5. Rakesh Singh - राकेश सिंह on September 12, 2009 at 10:14 AM

    पंकज भाई मजेदार लिख रहे ही .... लगे रहो ...

     
  6. निर्मला कपिला on September 12, 2009 at 10:51 AM

    ररे ये बोदूराम तो दिन पर दिम छा रहा है बधाई पंकज जी

     
  7. अपूर्व on September 12, 2009 at 12:22 PM

    मै नहीं चाहत कि मेरी फिल्म रीलिज होने के पहले डब हो जाए .


    भाई नये-नये मुहावरे खोज के लाते हैं आप..और हाँ एक साल मे एक करोड़ कमाने के फ़ार्मुले का हम भी इन्तजार कर रहे हैं..आपकी अगली कड़ी का

     
  8. ताऊ रामपुरिया on September 12, 2009 at 1:57 PM

    लगता है ये बोदूरामजी जितने जमीन के बाहर हैं उतने ही जमीन के अंदर भी हैं?:)

    रामराम.

     
  9. ओम आर्य on September 12, 2009 at 3:07 PM

    BAHUT HI SUNDAR RACHANA AGALE ANK KA INTAJAR RAHEGA...........ROCHAK LEKHAN

     
  10. डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) on September 12, 2009 at 9:18 PM

    bahut hi mazedar likha hai aapne......

     

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साँस लेते हुए भी डरता हूँ! ये न समझें कि आह करता हूँ! बहर-ए-हस्ती में हूँ मिसाल-ए-हुबाब! मिट ही जाता हूँ जब उभरता हूँ! इतनी आज़ादी भी ग़नीमत है! साँस लेता हूँ बात करता हूँ! शेख़ साहब खुदा से डरते हो! मैं तो अंग्रेज़ों ही से डरता हूँ! आप क्या पूछते हैं मेरा मिज़ाज! शुक्र अल्लाह का है मरता हूँ! ये बड़ा ऐब मुझ में है 'yaro'! दिल में जो आए कह गुज़रता हूँ!
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