अहसास रिश्‍तों के बनने बिगड़ने का !!!!

एक चटका यहाँ भी

नमस्कार !
आज बारे थी बोदूराम के आर्थिक योजना के बारे में बताने का पर बोदूराम धोखा दे गए . उन्होंने कहा था कि कल बतायेगे लेकिन वीक एंड पर चले गए और रात में टुन्न होकर आये ही तो कौन पूछे इसीलिए आज आप मेरा साप्ताहिक " हँसी के रंग पंकज के संग का चौथा भाग पढिये .

पागलखाने का डॉक्टर अपनी पत्नी को कहता है- पागलों के साथ रह-रहकर मैं आधा पागल तो हो ही गया हूं।



पत्नी- कभी कोई काम पूरा भी कर लिया करो।

डॉक्टर (मरीज से)- तुम्हारे ब्रेन की एक्स-रे रिर्पोट गयी है।
10 ग्राम मिट्टी, 10 ग्राम कंकड पत्थर, 25 तरह के कीड़े-मकोड़े, 5 ग्राम
मकड़ी के जाले और 500 ग्राम भूसा भरा हुआ है।



मरीज- कमाल है.. मुझे लगा खाली होगा...
http://i232.photobucket.com/albums/ee11/cy7xa/anim/78.gif


डॉक्टर (मरीज से)- तबीयत कैसे है अब?




मरीज (डॉक्टर से)- पहले से ज्यादा खराब है।



डॉक्टर- दवाई खा ली थी क्या?



मरीज- नही दवाई की शीशी तो भरी हुई थी।



डॉक्टर- मेरा मतलब है दवा ले ली थी?




मरीज- जी आपने दी तो मैंने ले ली थी।



डॉक्टर- बेवकूफ दवाई पी ली थी?



मरीज- नही जी दवाई तो लाल थी?



डॉक्टर- अबे गधे दवाई को पी लिया था?




मरीज- नही साहब पीलिया तो मुझे था।



डॉक्टर- अरे दवा को मुंह से लगाकर पेट में डाला था।



मरीज- नही



डॉक्टर- क्यूं



मरीज- आपने ही तो कहा था शीशी को ढक्कन लगाकर रखना।
http://img.widgetbox.com/thumbs/1a6ced4c-2b00-4130-8016-d63005f2c812.jpg





7 comments:

  1. हेमन्त कुमार on September 13, 2009 at 5:32 AM

    लाजवाब । आभार ।

     
  2. Himanshu Pandey on September 13, 2009 at 5:51 AM

    बेहद खूबसूरत हँसी के यह रंग । आभार ।

     
  3. Arvind Mishra on September 13, 2009 at 6:29 AM

    हाँ याद आया एक जगह दावा की शीशी हिलाने के बजाय लोग मरीज को ही हिला रहे थे !
    शीर्षक तो हंसी के रंग बोदूंराम के संग होना था -बहरहाल मजा आया ! देखिएगा कहीं बोदूराम का रूपांतरण इसी तरह पंकज में न हो जाय ! हम तो अभी तक इसका उलट समझ रहे थे !

     
  4. ताऊ रामपुरिया on September 13, 2009 at 9:36 AM

    वाह बहुत लाजवाब.

    रामराम.

     
  5. hem pandey on September 13, 2009 at 3:13 PM

    मजेदार चुटकुले.

     
  6. ओम आर्य on September 13, 2009 at 5:00 PM

    बहुत खुब.........

     
  7. निर्मला कपिला on September 13, 2009 at 8:29 PM

    हा हा हा बडिया आभार्

     

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साँस लेते हुए भी डरता हूँ! ये न समझें कि आह करता हूँ! बहर-ए-हस्ती में हूँ मिसाल-ए-हुबाब! मिट ही जाता हूँ जब उभरता हूँ! इतनी आज़ादी भी ग़नीमत है! साँस लेता हूँ बात करता हूँ! शेख़ साहब खुदा से डरते हो! मैं तो अंग्रेज़ों ही से डरता हूँ! आप क्या पूछते हैं मेरा मिज़ाज! शुक्र अल्लाह का है मरता हूँ! ये बड़ा ऐब मुझ में है 'yaro'! दिल में जो आए कह गुज़रता हूँ!
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