अहसास रिश्‍तों के बनने बिगड़ने का !!!!

एक चटका यहाँ भी

****जगह ना बना पाया ****

कल रात मेरी आँखों से आँशू निकल आया ,http://api.ning.com/files/wN2MnGjHR3gZqUoAmzHmMUldGxlT25nG*0wK1no7i2ilCHdQ*mqozWQroHUcFBs95xORwKVywGH-8gNgFZZDzfgPUW1Iqlj4/BlueEyeTears.jpg

मैंने उससे पुछा तू बाहर क्यु आया ?

तो उसने बताया कि ,


कोई तेरी आँखों में है इतना समाया ,


मै चाह कर भी अपनी जगह ना बना पाया .

**********************

9 comments:

  1. Udan Tashtari on September 8, 2009 at 5:44 AM

    बहुत भावपूर्ण उम्दा रचना, बधाई.

     
  2. mehek on September 8, 2009 at 9:12 AM

    कोई तेरी आँखों में है इतना समाया ,


    मै चाह कर भी अपनी जगह ना बना पाया .
    waah khubsurat,ishq ki inteha isko hi kehte hai,aafrin

     
  3. ताऊ रामपुरिया on September 8, 2009 at 11:13 AM

    बहुत ही नायाब रचना.

    रामराम.

     
  4. Urmi on September 8, 2009 at 12:44 PM

    बहुत ही भावुक और सुंदर रचना लिखा है आपने जो दिल को छू गई!

     
  5. निर्मला कपिला on September 8, 2009 at 2:50 PM

    कोई तेरी आँखों में है इतना समाया ,


    मै चाह कर भी अपनी जगह ना बना पाया
    वाह पंकज जी लाजवाब अभिव्यक्ति है गागर मे सागर हैं चंद शब्दों मे बहुत कुछ कह दिया बधाई और ये आँसू कभी अपनी जगह आपकी आँ खों मे बना भी ना पाये बहुत बहुत आशीर्वाद्

     
  6. Piyush Aggarwal on September 8, 2009 at 6:59 PM

    adbhut! bahut khoob

     
  7. Creative Manch on September 8, 2009 at 9:01 PM

    बहुत भावपूर्ण रचना
    दिल को छू गई

    बधाई



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  8. दिगम्बर नासवा on September 8, 2009 at 10:56 PM

    गहरे BHAAV हैं आपकी कुछ ही LAAINON में ............
    बहूत KHOOB ....

     
  9. Rakesh Singh - राकेश सिंह on September 10, 2009 at 8:32 PM

    बेहतरीन रचना ....

     

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साँस लेते हुए भी डरता हूँ! ये न समझें कि आह करता हूँ! बहर-ए-हस्ती में हूँ मिसाल-ए-हुबाब! मिट ही जाता हूँ जब उभरता हूँ! इतनी आज़ादी भी ग़नीमत है! साँस लेता हूँ बात करता हूँ! शेख़ साहब खुदा से डरते हो! मैं तो अंग्रेज़ों ही से डरता हूँ! आप क्या पूछते हैं मेरा मिज़ाज! शुक्र अल्लाह का है मरता हूँ! ये बड़ा ऐब मुझ में है 'yaro'! दिल में जो आए कह गुज़रता हूँ!
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