अहसास रिश्‍तों के बनने बिगड़ने का !!!!

एक चटका यहाँ भी

नमस्कार , मै पंकज मिश्रा स्वागत करता हु अपने साप्ताहिक कार्यक्रम हँसी के रंग, पंकज के संग में.
आज इसका ६ठा अंक है .


-बोदूराम एक बार एक जगह संगीत सुनने गए थे एक गायक बहुत ही बोरियत वाला गाना गा रहा था. सारे दर्शक परेसान हो गए और उब कर सोने लगे . बोदूराम मंच के सामने डंडा लेकर टहल रहा था . गायक ने देखा कि यह आदमी बहुत देर से डंडा लेकर टहल रहा है .गायक ने कहा - भाई साहब बैठ जाइए बस ये आख़िरी लाइन पेश कर रहा हु .
बोदूराम- नहीं नहीं जनाब आप पेश करते रहो दो चार लाइन और मै तो उस बेवकूफ को ढूढ़ रहा हु जिसने तुम्हे यहाँ बुलाया है .

http://media.merchantcircle.com/25911034/fun_medium.gif
- बोदूराम एक जगह गए थे हास्य नाटक देखने . लेकिन नाटक में मजा नहीं रहा था पब्लिक सो चुकी थी इतने में पीछे से तालियों की आवाज आयी .
नाटक के पात्र परेशान हो गए और देखा तो पीची बैठे बोदोराम जी ने ताली बजाई थी.
नाटक के कलाकार ने पूछा भाई साहब सारे लोग तो सो गए मेरा ये नाटक देखकर आप को क्या अच्छा लगा जो ताली बजा रहे हो ?
बोदूराम - कुछ नहीं आप लोग खेलो नाटक मै तो बस नीद नहीं आ रही थी इसीलिए तम्बाकू बना रहा था :)http://www.larj.biz/images/fun.gif

6 comments:

  1. Himanshu Pandey on September 27, 2009 at 6:24 AM

    ऐसी ही अनापेक्षित ताली बज रही है हर तरफ बोदूराम की तरह !

    यह तो काफी मजेदार रंग हैं हास्य के । आभार ।

     
  2. ताऊ रामपुरिया on September 27, 2009 at 10:11 AM

    बहुत बढिया जी, ऐसी ही देशी महफ़िल हास्य की जमती रहे.

    रामराम.

     
  3. Udan Tashtari on September 27, 2009 at 11:29 AM

    बहुत हा हा वाली तम्बाखू घिसी!! :)

     
  4. डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) on September 27, 2009 at 8:45 PM

    hahahahahahahaha...........

    pankaj......... itihaas se related sawaal ka maine jawaab post kar diya hai...... plz blog dekhen.........


    aur apna view den....

     
  5. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' on September 27, 2009 at 10:32 PM

    रोचक और बढ़िया आलेख!

    विजयादशमी पर्व की आपको शुभकामनाएँ!

     
  6. Rakesh Singh - राकेश सिंह on September 30, 2009 at 1:38 AM

    हा...हा.... मजेदार रही ...

     

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साँस लेते हुए भी डरता हूँ! ये न समझें कि आह करता हूँ! बहर-ए-हस्ती में हूँ मिसाल-ए-हुबाब! मिट ही जाता हूँ जब उभरता हूँ! इतनी आज़ादी भी ग़नीमत है! साँस लेता हूँ बात करता हूँ! शेख़ साहब खुदा से डरते हो! मैं तो अंग्रेज़ों ही से डरता हूँ! आप क्या पूछते हैं मेरा मिज़ाज! शुक्र अल्लाह का है मरता हूँ! ये बड़ा ऐब मुझ में है 'yaro'! दिल में जो आए कह गुज़रता हूँ!
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