अहसास रिश्‍तों के बनने बिगड़ने का !!!!

एक चटका यहाँ भी


http://images.businessweek.com/ss/08/05/0515_india_ma/image/suzlon.jpgजीवन जीने के लिये क्या पैसा ही सब कुछ है ? नही मै ऐसा नही कह रहा कि सोचो नही तो आप कहोगे कि सोचना हो तो सोचो मेरा क्या काम इसमे . सही भी है आपका क्या काम अब मै अमिताभ जी कि तरह ये भी तो नही कह सकता कि मेरे ब्लोग पे आपका क्या काम है .


क्युकि मुझे पता है बन्धूवर काम है . वैसे कोइ ग्यानी अगर ब्लोग पर आते है तो कॄपया ये बताकर जाये कि हम पुरुष को तो बन्धूवर कहते है अगर महिला हो तो क्या कहेगे ?


दरअसल बात ऐसी थी कि पूरे १८ घन्टे वायरस से जुझने के बाद अगले दिन सुबह आफ़िस के रिसेप्शन केसामने रखे सोफ़े पर सर टिका कर बैठा था बस यू ही .


तभी
सामने से साफ़ सफ़ाई वाला आकर सिक्युरिटी से बोला कि वो काम करने से मना कर रहा है कह रहा है कि झाडू नही मारूगा. सिक्युरिटी वाला भी उतनी उंची आवाज मे बोला बूला कर ला साले को झाडू नही लगायेगा तो क्या प्लेन चलायेगा ? मै सिक्युरिटी की बात से अंदाजा लगाया कि शायद कोइ कम उम्र का लड्का होगा . लेकिन नही सामने से एक
६० साल का आदमी आता दिखायी दिया .


वो आते ही हाथ जोडकर बोला, साहब मै झाडू नही मारूगा बाकी चाहे जो काम आप करवा लो . सिक्युरिटी वाला बोला- घर मे तो झाडू तो लगाते होगे तो यहा क्यु नही लगा सकते हो ये तो कोइ बूरा काम नही है?


मै काफ़ी देर दोनो कि बातें सूना और ये निस्कर्ष निकाला कि अगर ये आदमी कह रहा है कि
उसने जीवन मेकभी झाडू नही लगया है तो आज क्यु कोइ उसको दवाब दे रहा है हो सकता है कि ये उसका स्वभिमान हो और होना भी चहिये वो कही कह तो सकता है कि मै कभी झडू नही लगाया. मै उसको अपने पास बुलाया और बोला, आपको झाडू नही लगाना है मत लगाओ


आप जाओ .लेकिन अब वो आदमी बदल गया और बोला मै पहले जहां काम करता था १३० रुपये मिलता था आज एक दिन के लिये कान्ट्रैक्टर ने यहा भेजा है
लेकिन यहा १०० रुपये ही मिलेगें अगर आप सेठ से बात करके १३० करवा दो तो मै काम करूगा .



मेरा दिमाग झन्नाया , मै सोचा , मै तो इसके स्वाभीमान के लिये बात कर रहा था लेकिन ये तो पैसे के नाते फ़िसल रहा है . खैर १३० करने पर पूरे दिन भर काका झाडू लगाये .



अब दूसरा पहलू देखिये - गया समोसा खाने . एक साल का लडका जो कि समोसा बाट रहा था और फ़ुर्सत्त होने पर बर्तन भी धो लेता है खूब जोर जोर से गाना गा रहा था


*
चमाचम चमके अन्गूरी बदन*

मै
भी मजाक के लहजे मे बोला वाह छोटू काफ़ी अच्छा गा ले
ते हो . लडका बोला - और नही तो क्या आप मुझे समझते क्या है मेरे घर पे बडी सी टी वी है ,सी डी प्लयेर है . कुल १८ हजार महिने के आते है . मै बोला अच्छा कैसे आते है ?




लडका बोला- हजार मेरे पापा कमाते है हजार मेरी मम्मी हजार मेरा भाई और दो हजार मुझे सेठ देता है यहा . मै बोला अगर इतने पैसे आते है तो पढाई करो काम क्यु करते हो? लड़का बोला - मुझे अपने शादी मे बहूत पैसे खर्चा करना है इसिलिये काम कर रहा हु .




जैसा कि मै उपर कहा था अब आप कि बारी है जरा सोचकर बताईयेगा क्या पैसा ही सब कुछ है ? धन्यवाद सहित,


पंकज मिश्राhttp://shapeshed.com/images/uploads/comment_stage_6.png कमेन्ट करने के लिए क्लिक करे !

9 comments:

  1. अनिल कान्त on September 1, 2009 at 5:21 PM

    हालांकि पैसे से जिंदगी की सभी चीज़ें नहीं खरीदी जा सकती फिर भी जिंदगी को जीने के लिए पैसे की भी अपनी एक अहमियत है

     
  2. अनिल कान्त on September 1, 2009 at 5:21 PM

    हालांकि पैसे से जिंदगी की सभी चीज़ें नहीं खरीदी जा सकती फिर भी जिंदगी को जीने के लिए पैसे की भी अपनी एक अहमियत है

     
  3. निर्मला कपिला on September 1, 2009 at 6:18 PM

    अनिल कान्त जी सही कह रहे हैमगर पैसे की अहमियत को इन्सान कहाँ समझ रहा है वो तो पैसे से खेलना चाहता है बस उसका उप्योग नहीं करना चाहता अज की दुनिया मे तो जैसे पैसा ही सब कुछ रह गया है मगर जब होश आती है कि पैसा तो कुछ भी नहीं है मन की शान्ति के आगे तब तक देर हो चुकी होती है। अपनी अपनी सोच है और संस्कार हैं सोच का बहुत बडा योगदान समाज का भी है खैर अच्छा सवाल उठाया है । इस पर चर्चा होनी ही चाहिये आभार पंकज जी आपका प्रयास बहुत अच्छा है

     
  4. श्यामल सुमन on September 1, 2009 at 8:20 PM

    यह सच है कि पैसा सब कुछ नहीं है लेकिन बहुत कुछ है क्योंकि इस अर्थ-प्रधान युग में अर्थ-विहीन आदमी का जीवन प्रायः अर्थ-हीन हो जाता है।

    स्थितियों को देखने का नजरिया पसन्द आया पंकज जी।

     
  5. Urmi on September 2, 2009 at 6:48 AM

    बढ़िया लिखा है आपने! पैसा ज़िन्दगी में सब कुछ नहीं होता लेकिन पैसे के बगैर भी ज़िन्दगी नहीं गुज़ारा जा सकता! पर पैसे से सब कुछ नहीं ख़रीदा जा सकता जैसे माँ पिताजी भाई बहन और दोस्तों का प्यार!

     
  6. ताऊ रामपुरिया on September 2, 2009 at 8:30 AM

    भाई आजकल जमाना पैसामय होगया है. यहां तक की संबंध भी पैसे के स्तर से बनते हैं.

    रामराम.

     
  7. दिगम्बर नासवा on September 2, 2009 at 1:56 PM

    PAISA JAROORI HAI PAR SAHI SAMAY MEIN SAHI KAAM KARNA BHI JAROORI HAI ..... PAISE KI BHOOKH THEEK NAHI .... MERAA MAANNA HAI AGAR SAMAY PADHAAI KA HAI TO PAHLE GYAN ARJIT KARNA CHAAHIYE .. HAAN JAROORAT BHAR KE LIYE PAISAA HONA CHAAHIYE US VAQT BHI ...

    PADHAAI CHOD KAR KHALI PAISAA KAMAANA .. BAAD MEIN BAS PACHTAAVA HI DETA HAI ....

     
  8. Udan Tashtari on September 2, 2009 at 4:16 PM

    यह सच है कि पैसा सब कुछ नहीं है लेकिन बहुत कुछ है -श्यामल जी सही कह रहे हैं. विचारणीय..

     
  9. प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' on September 2, 2009 at 4:50 PM

    अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...

     

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साँस लेते हुए भी डरता हूँ! ये न समझें कि आह करता हूँ! बहर-ए-हस्ती में हूँ मिसाल-ए-हुबाब! मिट ही जाता हूँ जब उभरता हूँ! इतनी आज़ादी भी ग़नीमत है! साँस लेता हूँ बात करता हूँ! शेख़ साहब खुदा से डरते हो! मैं तो अंग्रेज़ों ही से डरता हूँ! आप क्या पूछते हैं मेरा मिज़ाज! शुक्र अल्लाह का है मरता हूँ! ये बड़ा ऐब मुझ में है 'yaro'! दिल में जो आए कह गुज़रता हूँ!
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