****जगह ना बना पाया ****
कल रात मेरी आँखों से आँशू निकल आया ,
मैंने उससे पुछा तू बाहर क्यु आया ?
तो उसने बताया कि ,
कोई तेरी आँखों में है इतना समाया ,
मै चाह कर भी अपनी जगह ना बना पाया .
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एक चटका यहाँ भी
9 comments:
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Udan Tashtari
on
September 8, 2009 at 5:44 AM
बहुत भावपूर्ण उम्दा रचना, बधाई.
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mehek
on
September 8, 2009 at 9:12 AM
कोई तेरी आँखों में है इतना समाया ,
मै चाह कर भी अपनी जगह ना बना पाया .
waah khubsurat,ishq ki inteha isko hi kehte hai,aafrin -
ताऊ रामपुरिया
on
September 8, 2009 at 11:13 AM
बहुत ही नायाब रचना.
रामराम. -
Urmi
on
September 8, 2009 at 12:44 PM
बहुत ही भावुक और सुंदर रचना लिखा है आपने जो दिल को छू गई!
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निर्मला कपिला
on
September 8, 2009 at 2:50 PM
कोई तेरी आँखों में है इतना समाया ,
मै चाह कर भी अपनी जगह ना बना पाया
वाह पंकज जी लाजवाब अभिव्यक्ति है गागर मे सागर हैं चंद शब्दों मे बहुत कुछ कह दिया बधाई और ये आँसू कभी अपनी जगह आपकी आँ खों मे बना भी ना पाये बहुत बहुत आशीर्वाद् -
Piyush Aggarwal
on
September 8, 2009 at 6:59 PM
adbhut! bahut khoob
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Creative Manch
on
September 8, 2009 at 9:01 PM
बहुत भावपूर्ण रचना
दिल को छू गई
बधाई
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दिगम्बर नासवा
on
September 8, 2009 at 10:56 PM
गहरे BHAAV हैं आपकी कुछ ही LAAINON में ............
बहूत KHOOB .... -
Rakesh Singh - राकेश सिंह
on
September 10, 2009 at 8:32 PM
बेहतरीन रचना ....