नमस्कार दोस्तों .
आज सुबह आफिस के लिए निकला तो ट्रेन लेट होने की वजह से कुछ समय रेलवे स्टेशन के पास बने मजदूर चौक पर बिताया और जो देखा उससे मेरी आँखे भर आयी .
हम सभी सुबह तैयार होकर अपने घरो से नौकरी बिजनेश के लिए नकलते है या तो हाथ में टिफिन होगी या तो जेब में कैंटीन का कूपन और दिमाग में काम कि आज मुझे ये-ये निपटाना है और इतने बजे निकलाना है आदि-आदि .
लेकिन दूसरी तरफ हमारे समाज में कुछ ऐसे भी लोग है जिन्हें सिर्फ मजदूर चौक तक पहुचना होता है उनको ये नहीं पता होता कि आज क्या काम करना है , कहाँ जाना है कितने रुपये मिलेगे ?
सभी के हाथों में प्लास्टिक के थैले में लपेटा रोटी और आँखों में बेबसी नजर आती है .
लोग आते है गाडी में से ही बुलाते है और अगर दाम पटा तो लेकर जाते है नहीं तो किसी और मजदूर को खोजेगे .
मामला तो और पेचीदा तब हो जाता है जब कोई आकर बेटे के सामने ही बाप को ले जाने से मना करदेता है ये कहकर कि ये तो बुड्ढा है नहीं चलेगा, तू चल .
बाप सर झूका लेता है और बेटे को कहता है तू जा मै किसी और के साथ चला जाउगा .
नाबालिग बच्चे लड़किया सभी खड़े रहते है आँखों में एक झूठी चमक लेकर ,
आज मुझे पता चला कि क्यों पहले का कोई राजा महाराजा ये सब देखकर संन्यास लेकर जंगल चला जाता था . आज भी हमारी स्थिती उतनी नहीं सुधरी है जितना हम सोचते है . आज भी कई जगह सिर्फ दिन भर में रोटी का हिसाब होता है कितने लोग भूखे सो जाते है सिर्फ इसी आश में कि शायद कल कोई उनको भी ले जाए काम पर .
आँखों में लिए सपने , घर से निकल पड़े .!खुद को कही दूर अँधेरे में छोड़ चले !!
देखना है कब पूरे होते है ये सपने !
जिनको हम अपने से ज्यादा , तवज्जो देते चले !!
बन जाता है चेहरा शुष्क , जब मिलती है गालियाँ !
खिल जाती है बांछे , जब मिलती है तालियाँ !!
पहले दर्द होता था , तो रो लेता था किस्मत के नाम पर !
अब तो किस्मत ,
किस्मत भी मुझे देखकर रास्ता बदल लिए !!
आँखों में लिए सपने , घर से निकल पड़े .!!!!
आज बारी तो थी बोदूराम कि अगली कड़ी लिखने की पर मन भर आया ये सब देखकर . बोदूराम की अगली कड़ी कल प्रकाशीत होगी .
नमस्कार.
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