नमस्कार , आज एक नया किस्सा बोदूराम का .
बोदूराम जब से ताऊ आश्रम से आया है बहुत चिंतित रहता है,
एक दो बार बार नौकरी पानी में भी हाथ आजमाने के बाद बोदूराम निराश हो चुके थे .
दिन रात नदी किनारे , मंदिर में , हर जगह जहा भी रहते सोच से ग्रसित रहते थे .
घर वाले परेशान करे तो क्या करे .
कई बार घर वाले जानना भी चाहे मगर कुछ पता नहीं कर पाए .
एक दिन बोदूराम की माँ बोली - बेटा तू हमेशा सोचता रहता है और ये सेहत के लिए अच्छा नहीं अगर ऐसा ही है तो तू एक काम कर सोचने के लिए एक आदमी रख ले वो तेरे बारे में सोचेगा .
बोदूराम को भी आईडिया पसंद आया , तुंरत बाजार गया था १०० पम्पलेट छपवा लाया जिस पर लिखा था -
सोचने के लिए एक उम्मीदवार चाहिए , उम्र १८ से ३४ के बीच शिक्षा बी काम होना अनिवार्य .
रहने खाने तथा मोटी तनख्वाह दिया जाएगा . जो कोई अपने आप को सोचने के काम के योग्य समझता हो संपर्क करे .
बोदूराम
अगले दिन ही १०० से ज्यादा उम्मीदवार आ गए नौकरी के लिए बोदूराम ने उसमे से एक को चुना .
नाम था रमेश शिक्षा एम् बी ए फ्राम झारखण्ड .
बोदूराम ने पूछा , हा रमेश जी आप हमारे लिए सोचेगे ?
रमेश- सोचेगे ना साहब दिन रात सोचेगे , सुबह शाम सोचेगे
सोते जागते सोचेगे ,हसते रोते ,खाते पीते .
हमेशा आपके लिए सोचुगा .
पर साहब एक बात बताइये आप मुझे पगार कितनी दोगे ?
बोदूराम -२५ हजार हर महीने .
चलो रमेश अब एक बात मै तुम्हे सोचने का मौका देता हु इससे हमारा तुम्हारा सबका फायदा होगा .
रमेश- बताइये सर .
बोदूराम- मेरी महीने की कमाई ५ पैसा भी नहीं है और मै तुम्हे २५ हजार दुगा . कहा से ?
रमेश - कहा से दोगे सर
बोदूराम- बस रमेश यही सोचकर बता दो पैसा ले जाओ .