नमस्कार , मै पंकज मिश्रा आप के साथ अपने इस खाश पोस्ट में.
खाश इसीलिए कि मै इस पोस्ट में जिस शख्श की बात करने जा रहा हु उसे कही से भी इसकी जरुरत नहीं है ऐसा मुझे महसूस होता है . वह हम सबको जानता है और हमारे द्वारा किये गए पोस्ट को भी पढ़ता है . टिप्पणिया नहीं करता लेकिन आप के द्वारा किये गए टिप्पणियों की चर्चा जरुर करता है .
जी हां आपने सही पहचाना मै बात कर रहा हु , हमारे ब्लागजगत के एक मात्र टिप्पणी चर्चाकार " चच्चा टिप्पू सिंह जी की "
चच्चा टिप्पू सिंह जी हमेशा से निर्विवाद चर्चा करते आये है और उन्होंने अपने ब्लाग पर बहुत पहले लेख दिया था कि अगर आप में से कोई यह चाहता है कि आप द्वारा की गई टिप्पणियों की या आपकी चर्चा ना हो तो आप मुझे बता सकते है मै उन्हें कभी भी अपनी इस टिप्पणी चर्चा में शामिल नहीं करुगा . यह चच्चा द्वारा घोषित और पालन किया जाने वाला एक उच्च नैतिकता का नियम था.
खैर ये बात तो हो गयी चच्चा की तरफ से और दूसरी तरफ मै बात कर रहा हु अपनी खुद की .
मैने ब्लागिंग शुरू की, लिखता और सुबह सभी चर्चा ब्लॉग पर जाकर देखता कि कही मेरी भी पोस्ट कि चर्चा हुई है क्या? लेकिन चर्चा होना तो दूर, कुछ और ही हुआ रहता था . हर हफ्ते किसी ना किसी ब्लागर का जनाजा निकालते दिखे, कुछ हमारे चर्चाकार बंधू . और उसी लपेट में एक दिन उन्होंने गलती से साँप के मुह में हाथ डाल दिया यानि चच्चा टिप्पू सिंह के ब्लॉग पर .
हालांकि कि इससे पहले भी इससे ज्यादा ज्यादा मौज लिया गया है इन लोगो द्बारा, लेकिन पीड़ित पक्ष सिर्फ अपना विरोध दर्ज कराकर चुप हो जाता था और उसको जिस मंच से बेईज्तज किया जाता था वहां पर ही अगले दिन एक सफाई पत्र थमा दिया जाता था .
पीड़ित ब्लॉगर को कुछ लोग जाकर समझाते कि अरे भाई आप क्यों परेशान होते हो ये तो उनकी आदत है. वैसे वो दिल के नेक इंसान है . जैसे चचा टिप्पू सींह को भी समझाया गया.
ज्यादा बात आगे बढ़ती तो अगले दिन ही दूसरी चर्चा करके इति श्री कर दिया जाता था . पीड़ित और हताश ब्लॉगर ये सोचकर चुप रह जाता कि जाने दो नहीं तो कल से ये सारे के हमारे ब्लॉग पर आयेगे भी नहीं .
लेकिन धन्य हो चच्चा टिप्पू सिंह जी आप धन्य हो !
आपने इनको जवाब दिया है और ऐसा दिया है कि ना तो लीलते बन रहा है और ना निगलते ही . ब्लॉग जगत के कुछ ब्लॉगर अपने ब्लॉग पर बैठे बैठे ही दुसरे की भावनाओं को जान जाते है और बताते है कि भावनाए गलत नहीं होनी चाहिए . लेकिन चच्चा टिप्पू सिंह जी ने अपनी बात पकड़ ली है . भूले बिसरे गीत बोले जाने की . अब अगर लोगो का ये कहना है कि बालक है बालक नादानी कर दिया तो चचा ने भी करारा जवाब दिया है कि अगर बालक नादाँ है तो अपने लोगो पर पत्थर उछाले . और मै भी इसी बात से सहमत हु कि अगर नादाँ है तो आप समर्थको पर पत्थर क्यों नहीं उछलता ?
चच्चा टिप्पू सिंह जी मै खुले तौर पर आपके साथ हु , वैसे ये भी पता है मुझे कि आपको किसी के साथ की जरुरत नहीं है फिर भी अपना भतीजा मानकर मुझे अपना चच्चा कहने से वंचित मत करिए . मै आपको और आपके द्बारा चलाये गए इस गांधीवादी मुहीम की समर्थन करता हु . और आपके द्वारा बनाए गए नियंमो का पालन करुगा .
आपने एक स्वस्थ विरोध की प्रक्रिया शुरु की है, इसमें हर ब्लागर आपके साथ है, अभी शायद कई लोग खुलकर सामने नही आये हैं जो की जल्दी ही आयेंगे. हमें भी अजय झा जी की तरह टिप्पणी चर्चा करने वाले समूह मे शामिल करने की मेहरवानी करें. मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि आपके ब्लाग नैतिकता नियमों का पालन करते हुये टिप्पणी चर्चा किया करुंगा.
और बाकी सभी से बस यही कहना है ,
अभी आये , अभी बैठे , अभी दामन सम्भाला है ,!
आप भी क्या याद रखोगे , चचा ने क्या दम निकाला है .!!
टिप्पू चच्चा आपकी जय हो !!
एक चटका यहाँ भी
15 comments:
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निर्मला कपिला
on
October 5, 2009 at 3:21 PM
पंकज जी ये किस्सा क्या है? हम जैसे नासमझ को भी समझायें । सभी ब्लाग्स पर जा नहीं पाती आज कल इस लिये समझ नहीं आयी । आभार्
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समय चक्र
on
October 5, 2009 at 3:32 PM
मिश्रजी ये कौन है भाई टिप्पू सिह.... बहुत बढ़िया आप तो चचा टिप्पू सिह के खासमखास है जी ...
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Anonymous
on
October 5, 2009 at 3:47 PM
पंकज जी आपकी ये बात सही है कि कुछ ब्लागर अभी सामने आकर चच्चा का साथ नहीं दे रहे है लेकिन अन्दर से है जैसे कि मै :)
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Arvind Mishra
on
October 5, 2009 at 4:19 PM
भाई पंकज इन दिनों लगता है बहुत फुरसत है तभी इन मामलों में भी फुरसत से लिख रहे हैं -समापन करिए इस प्रसंग का !
चाहतें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले ,बहुत निकले मेरे अरमा फिर भी कम निकले -
Himanshu Pandey
on
October 5, 2009 at 4:39 PM
हाँ, इसका समापन ही ठीक होगा ! अरविन्द जी का खयाल रखिये ।
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"सांड" बनारसी
on
October 5, 2009 at 5:15 PM
lage raho lage raho!!
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ओम आर्य
on
October 5, 2009 at 5:52 PM
पंकज जी
मुझे भी कोई बात पल्ले नही पडी ,माजरा कया है ? -
श्रीमती अमर भारती
on
October 5, 2009 at 6:12 PM
चच्चा भी सच्चा,
भतीजा भी सच्चा.
मगर खा न जाना-
कहीं यार गच्चा। -
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
on
October 5, 2009 at 6:18 PM
चच्चा भी अच्छा,
भतीजा भी अच्छा।
नही हमको मालूम है,
कौन बच्चा? -
विनोद कुमार पांडेय
on
October 5, 2009 at 11:56 PM
बहुत खूब चाचा जी..
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Rakesh Singh - राकेश सिंह
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October 6, 2009 at 1:56 AM
अच्छा किया बता दिया आपने ... मुझे तो मालुम ही नहीं था
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Udan Tashtari
on
October 6, 2009 at 6:51 AM
चच्चा टिप्पू सिंग पनी जगह सही हैं, सब समझ रहे हैं.
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रश्मि प्रभा...
on
October 6, 2009 at 1:29 PM
khulkar batayen...kuch adhuri pehchan hai
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दिगम्बर नासवा
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October 8, 2009 at 12:02 AM
ab to khul kar bataa den pankaj ji ..... maajra kya hai ...
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Chandan Kumar Jha
on
October 8, 2009 at 2:50 PM
जय हो चच्चा और भत्तिजा कीईईइ !!!!!