अहसास रिश्‍तों के बनने बिगड़ने का !!!!

एक चटका यहाँ भी


कही कही तो बारिश एकदम से नही हो रही है और कही कही इतनी हो रही है की बंद होने का नाम नही ।
जहा होनी चाहिए वहा नही हो रही है और जहा नही होनी चाहिए वहा ये नौबत है की लोग कह रहे है की ,
थम के बरष हो ज़रा थम के बरष मुझे ड्यूटी पे आज जाना है देर से पहुचुगां मुझपे बरसेगा
जम के बरष जा कही और बरष


आज चार दिन हो गया बारीश रुकने का नाम नही कोई रोकने वाला भी नही है क्युकी सारे के सारे कर्मचारी मय इन्द्र इस समय मीटिंग में व्यस्त है जैसा की हमारे वरिष्ठ ब्लॉगर बंधू कह चुके है की आज बादल और बदली की मीटिंग चल रही है इन्द्र के साथ। और जो एक दो बच गए है ओ भक्तो को SMS करने में व्यस्त है
अब कौन सुध ले की भाई जो तुमने दमन में अपना बरसात चालू कर रखा है कृपया वहा से बंद करके हमारे अन्य स्तुति गान करने वाले लोगो के एरिया में जाइये ।
और वहा लगातार मुंबई , गुजरात , दमन और सिलवासा में बारीश अपना असली रूप दिखा रही है ।
सायद बदली और बादल भूल गए कि यहाँ की आउट पुट तो खोल रखी है
अब एक दरबारी भागा -भागा आता है और इन्द्र देवता से बोलता है की -
अरे आप लोग यहाँ मीटंग में व्यस्त हो वहा इंडिया गेट, वरसोवा , दमन का अस्तित्व खतरे में है । इन्द्र देव आप कुछ करो दूसरी तरफ़ UP, बिहार, राजस्थान आदी इलाके में सरकार सुखा का पैसा बाट रही है ।
इन्द्र देव ने जब ये बातें सूनी तो उनके कान खड़े हो गए उन्होंने तुंरत बादल और बदली को घूर के देखा और पूछा - क्यो , मै आप लोगो से पूछता हु ऐसा क्यों ?
बदली - महाराज आप न पूछे तो अच्छा है ये सब उन मानवों की ही गलती है ।
इन्द्र देव - कैसे ....?





अब बादल से नही रहा गया ओ बोल उठा । महाराज हम अपना काम सही तरीके से करते है लेकीन ये मानव हमारे ऊपर ब्लेम करते है कहते है कि हम बदली से मिले है और कुली कि मांग कर रहे है लेकिन महाराज जहा हम पानी बरषा रहे है वहा के लिए तो हमने कोई कूली की मांग की आपसे कभी ?

बदली - हा महाराज और मुझे ये कहते है कि मै जहा पे क्रीम पावडर देखती हू ही पे बरसने लगती हू अब आप ही बताओ महराज हम इतने गिरे हुए है ?
इन्द्र - ऐसी बात् है ।
बदली - हा महाराज और कहते है कि मै सिर्फ़ शहरों में ही बरसती हू महाराज आप बताओ जब शहर में बड़ी बड़ी बिल्डिगे चिमनिया है हम लोग वहा ही टकराकर गिर जाते है तो क्या करे ?
इन्द्र देव - ऐसी बात्, चित्रगुप्त सवारी तैयार करवाओ हम स्वयं देखेगे ।



सभी फोटो गूगल से साभार


1 comments:

  1. ताऊ रामपुरिया on July 24, 2009 at 11:31 PM

    बहुत सही लिखा जी. आखिर बदली भी तो आधुनिकता मे रंग गई है आजकल. बहुत सुंदर लिखा.

    रामराम.

     

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साँस लेते हुए भी डरता हूँ! ये न समझें कि आह करता हूँ! बहर-ए-हस्ती में हूँ मिसाल-ए-हुबाब! मिट ही जाता हूँ जब उभरता हूँ! इतनी आज़ादी भी ग़नीमत है! साँस लेता हूँ बात करता हूँ! शेख़ साहब खुदा से डरते हो! मैं तो अंग्रेज़ों ही से डरता हूँ! आप क्या पूछते हैं मेरा मिज़ाज! शुक्र अल्लाह का है मरता हूँ! ये बड़ा ऐब मुझ में है 'yaro'! दिल में जो आए कह गुज़रता हूँ!
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