काफी दिनों के बाद जब मै आज अपने इस ब्लॉग पर सुबह सुबह लौटा तो देखा की हमारा सबसे प्यारा बोदूराम तो दिखाई ही नहीं दे रहा है काफी लोगो से पूछताछ करने पर पता चला की बोदूराम को तो पुलिस उठा ले गयी ..
उलटे पाँव मै भागा-भागा पुलिस थाने पहुचा तो क्या देखता हु की बोदूराम को पुलिस वाले बुरी तरह पीट रहे थे !
मै बोदूराम के पास गया और पूछा , तो बोदूम ने जवाब दिया -
अरे भईया यही बतिया तो हमारी भी ना समझ में आ रही है की क्यों पीट रहे है ? और कह रहे है की जबान लड़ाता है , जबान लडाएगा तो और पिटुगा , बस इसी डर से हम पूछ भी नहीं रहे है ,
और ये साले ट्रेनिंग वाले पुलिस है , तो का ससुरे हमही मिले थे ट्रेनिंग के लिए ?
मै पूछा - अरे बोदूराम जी ज़रा याद तो करो कही कुछ तो गड़बड़ किये होगे यार
बोदूराम बोला - कुच्छो नहीं किये है सुबह जगे और साइकिल लेकर ब्लॉगखाने जा रहा था .
एक बीडी जला लिया था और उसका वही रखिया गिराने जा रहा तो देखा की समनवा से नगर पालिका वाला चला आ रहा था , तो हम सोचे की अगर यहाँ रखिया गिरायेगे तो इ पालिकावा वाला हमका पकड़ लेगा इसीलिए रखिया नहीं गिराए ,
तभी बगल में एक मोटर साइकिल आकर रुकी और उस पर पिछवा एक मैडम बैठी थी और उनकर जीन्सवा पिछवा गोल होकर के कमर के पास एकदम कटोरी जैसा बन गया था , हम सोचे इ ऐश ट्रे है , बस का था पुरी रखिया वही गिरा दिए ,
बस एक वह समय था और एक अब, तब से इ ससुरे गदहा की तरह पीट रहे है और कहते है की जबान लडाएगा तो और मारेगे .
बस इसी दर से हम पूछ भी नहीं प् रहे है की काहे पीट रहे है
एक चटका यहाँ भी
15 comments:
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राज भाटिय़ा
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March 21, 2010 at 8:56 PM
अरे बोदूराम बो ऎश ट्रॆ नही भाई वो तो उस की आजादी है , ओर तुम ने उस आजादी पर सिगरेट की राख डाल कर बहुत बडा जुरम किया, एक तो बुरी नजर डाली, दुसरी राख डाली अब तो तुम्हे इस भंयकर जुर्म की सजा से कोई नही बचा सकता, अरे बबूया थोडा प्यार से देखते तो क्या बिगड जाता, उस की आजादी बच जाती, तो तुम्हारी दुखती आंखे सीक जाती
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डॉ. मनोज मिश्र
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March 21, 2010 at 9:07 PM
अब इ कहाँ से बोदुराम नें नई मुसीबत ले ली,ऐसा उसे करना ही नही चाहिए,गलत कार्य का नतीजा तो भुगतना पड़ेगा न,अब भुगते....
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मनोज कुमार
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March 21, 2010 at 9:26 PM
गलत कार्य का नतीजा तो भुगतना पड़ेगा न.
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ब्लॉ.ललित शर्मा
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March 21, 2010 at 9:37 PM
हा हा हा
रखिया झाड़ने का
नतीजा तो भुगतना पड़ेगा न।
जोरदार धांसु आईडिया
बोदुराम का -
Arvind Mishra
on
March 21, 2010 at 9:37 PM
ye to theek nahee hai
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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March 21, 2010 at 10:06 PM
good.
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Udan Tashtari
on
March 22, 2010 at 12:06 AM
सही पिटा बोदूराम...
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Randhir Singh Suman
on
March 22, 2010 at 8:14 AM
nice
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ताऊ रामपुरिया
on
March 22, 2010 at 9:21 AM
लगता है बॊदूराम अकेले रहकर बिगडता जारहा है. उल्टे सीधे काम करने लगा है.
रामराम. -
ब्लॉ.ललित शर्मा
on
March 22, 2010 at 10:08 AM
अरे भाई एक बार फ़िर आ गए।
बोदु राम की करतुत सुनकर
हंसी रुक ही नही रही थी।
शायद अब रुक जाए।
हा हा हा हा -
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
on
March 22, 2010 at 10:10 AM
ये भोंदू राम भी बिगड़ता जा रहा है दिन प्रतिदिन !
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Amrendra Nath Tripathi
on
March 22, 2010 at 4:22 PM
कहाँ - कहाँ कटोरी निकाल रहे हो लेखक !
बोदूराम से बेहतर होता भोंदूराम होते ! -
Pt. D.K. Sharma "Vatsa"
on
March 22, 2010 at 8:19 PM
लगता है ये बोदूराम ताऊ की संगत में पड गया है :-)
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Himanshu Pandey
on
March 23, 2010 at 8:33 PM
दुस्साहसी भी हो गये हैं बोदूराम !
अपने बोदूराम की यह पोस्ट अनटाइटिल्ड क्यों हैं भाई ! -
kshama
on
April 22, 2010 at 11:59 AM
Ha,ha,ha!