अहसास रिश्‍तों के बनने बिगड़ने का !!!!

एक चटका यहाँ भी

नमस्कार , आज एक नया किस्सा बोदूराम का .

बोदूराम जब से ताऊ आश्रम से आया है बहुत चिंतित रहता है,

एक दो बार बार नौकरी पानी में भी हाथ आजमाने के बाद बोदूराम निराश हो चुके थे .
दिन रात नदी किनारे , मंदिर में , हर जगह जहा भी रहते सोच से ग्रसित रहते थे .
घर वाले परेशान करे तो क्या करे .
कई बार घर वाले जानना भी चाहे मगर कुछ पता नहीं कर पाए .
एक दिन बोदूराम की माँ बोली - बेटा तू हमेशा सोचता रहता है और ये सेहत के लिए अच्छा नहीं अगर ऐसा ही है तो तू एक काम कर सोचने के लिए एक आदमी रख ले वो तेरे बारे में सोचेगा .



बोदूराम को भी आईडिया पसंद आया , तुंरत बाजार गया था १०० पम्पलेट छपवा लाया जिस पर लिखा था -

सोचने के लिए एक उम्मीदवार चाहिए , उम्र १८ से ३४ के बीच शिक्षा बी काम होना अनिवार्य .
रहने खाने तथा मोटी तनख्वाह दिया जाएगा . जो कोई अपने आप को सोचने के काम के योग्य समझता हो संपर्क करे .
बोदूराम


अगले दिन ही १०० से ज्यादा उम्मीदवार आ गए नौकरी के लिए बोदूराम ने उसमे से एक को चुना .
नाम था रमेश शिक्षा एम् बी ए फ्राम झारखण्ड .



बोदूराम ने पूछा , हा रमेश जी आप हमारे लिए सोचेगे ?
रमेश- सोचेगे ना साहब दिन रात सोचेगे , सुबह शाम सोचेगे
सोते जागते सोचेगे ,हसते रोते ,खाते पीते .
हमेशा आपके लिए सोचुगा .




पर साहब एक बात बताइये आप मुझे पगार कितनी दोगे ?
बोदूराम -२५ हजार हर महीने .



चलो रमेश अब एक बात मै तुम्हे सोचने का मौका देता हु इससे हमारा तुम्हारा सबका फायदा होगा .

रमेश- बताइये सर .
बोदूराम- मेरी महीने की कमाई ५ पैसा भी नहीं है और मै तुम्हे २५ हजार दुगा . कहा से ?


रमेश - कहा से दोगे सर

बोदूराम- बस रमेश यही सोचकर बता दो पैसा ले जाओ .


8 comments:

  1. पी.सी.गोदियाल "परचेत" on October 8, 2009 at 6:40 PM

    ha-ha, sahee tarkaayaa ramesh ko bonduram ne !

     
  2. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' on October 8, 2009 at 7:04 PM

    वाह....बोदूराम जी।
    घर में नही दाने,
    अम्मा चली भुनाने!

     
  3. Rakesh Singh - राकेश सिंह on October 8, 2009 at 8:42 PM

    भाई सोच सोच के सर भरी हो गया ... पता नहीं चला २५ हज़ार कैसे दोगे .... आखिर हम भी मुफ्त का २५ हज़ार पाना चाहते है....

    :)

    लगे रहो भाई .... सही जा रहे हो

     
  4. Chandan Kumar Jha on October 8, 2009 at 8:56 PM

    अरे वाह आपके ये बोदूराम तो बहुत हीं होशियार निकले । लगता है बस ये नाम के हीं बोदूराम है काम से नहीं :)

     
  5. पंकज on October 8, 2009 at 9:14 PM

    नाम के बोदू अकल के होशियार. बडे रोचक चरित्र हैं.

     
  6. निर्मला कपिला on October 9, 2009 at 2:29 PM

    वाह वाह जवाब नहीं आपके बोद्धूराम का बडा
    होशियार आदमी है । धन्यवाद्

     
  7. दिगम्बर नासवा on October 9, 2009 at 4:27 PM

    bahoot tez hai bhai ye Bodooraam ...... bhaiya classes leni shuru kar do ab to .....

     
  8. अजय कुमार on October 9, 2009 at 5:52 PM

    देश भी बोदुराम चलाता है

     

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साँस लेते हुए भी डरता हूँ! ये न समझें कि आह करता हूँ! बहर-ए-हस्ती में हूँ मिसाल-ए-हुबाब! मिट ही जाता हूँ जब उभरता हूँ! इतनी आज़ादी भी ग़नीमत है! साँस लेता हूँ बात करता हूँ! शेख़ साहब खुदा से डरते हो! मैं तो अंग्रेज़ों ही से डरता हूँ! आप क्या पूछते हैं मेरा मिज़ाज! शुक्र अल्लाह का है मरता हूँ! ये बड़ा ऐब मुझ में है 'yaro'! दिल में जो आए कह गुज़रता हूँ!
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