अहसास रिश्‍तों के बनने बिगड़ने का !!!!

एक चटका यहाँ भी


नमस्कार मै बोदूराम आज आपको अपनेताउ आश्रम के कुछ भूली बिसरी बातेंबताता हू.

हुआ यू कि मै ताउ अश्रम मे पढ्ता था और रामप्यारी पास के एक कान्वेन्ट स्कूल मे .मेरी आदत थी कि मै स्कूल से यह कहकर निकल जाता था कि मुझे ताई जी ने बुलाया है मास्टर जी भी ताई का नाम लेने पर छुट्टी तुरन्त दे देते थे . जानते है क्यु ? क्युकि ताई जी के हाथ मे मेड इन जर्मन लट्ठ जो रहती है :)


मै मास्टर साहब को यही बताकर वापस आ रहा था तो देखा कि रामप्यारी भी बैग लेकर आ रही थी . मै रामप्यारी को देखा तो बोला - आज इतने जल्दी क्यु ?

रामप्यारी बोली -
बोदूराम भैया आज मेरी मास्टर साहब की अचानक मौत हो गयी इसिलिये छुट्टी हो गयी लेकिन तुम कैसे जल्दी?

मै रामप्यारी को चाकलेट दिया और बोला कि घर मत बताना .
रामप्यारी बोली - ठीक है .
दोनो खेलते कुदते घर पहुचे . सामने ही ताऊ और ताईजी नजर गये ताऊ जी हुक्का लगा रहे थे और ताई जी बैठी थी .


देखते ही बोली -आज जल्दी कैसे?
मै बोला-
ताई जी रामप्यारी के स्कूल के मास्टर साहब मर गये इसिलिये मै इसको लेकर जल्दी आ गया . ताई जी कहने लगी - अरे रे रे ! अभी कल तो देखा था इधर से ही जा रहा था . बहूत नेक इन्सान था बेचारा मास्टर .



इतने मे मास्टर साहब सामने से सयकिल लेकर आते दिखायी दिये . आते ही बोले - ताई जी मै आज भी चन्गा हू मै जिन्दा हू. कहा है रामप्यारी?
रामप्यारी भागकर ताऊ जी के पास छुप जाती है .
ताऊजी बोले-
कोइ बात नही मास्टर साहब शायद रामप्यारी सपना देखी होगी. क्यु रामप्यारी?


रामप्यारी- हा ताऊजी शायद सपना ही दे्खी थी मै .
ताऊजी बोले- कोइ बात नही मास्टर साहब पर आप यहा इस समय, कैसे?
मास्टर बोला-
ताऊजी मुझे तो ये ये कहकर आयी थी कि ताईजी गुजर गयी तो मै आया था सान्त्वना देने !!



ताई बोली - क्या मुझे मारना चाहती है रूक ठहर जा.


हमारे सभी सम्माननीय पाठक गण,

मै एक नया चिटठा शुरू किया हु ये है उसका लिंक आशा है आप लोग सहयोग देगे .

चर्चा हिन्दी चिट्ठो की !!!



पंकज मिश्र

4 comments:

  1. ताऊ रामपुरिया on August 31, 2009 at 8:39 PM

    लो बोलो हमको तो मालूम ही नही था कि ये रामप्यारी ऐसा भी करती है?:)

    रामराम.

     
  2. निर्मला कपिला on August 31, 2009 at 9:46 PM

    वाह पंकज जी एक और बडिया पोस्ट क्या बात है आप तो ताऊ जी के परिवार के पीछे पड गयी अब अगर इस पोस्ट पर मैं बधाई दे दूँ तो ताऊ जी लठ ले कर मेरे पीछे पड जायेंगे आपको शुभकामनायें ही दिये देती हूँ

     
  3. दिगम्बर नासवा on September 1, 2009 at 5:14 PM

    LAJAWAAB POST HAI PANKAJ JI ..... HANSEE AA JAATI HAI AAPKE BLOG PAR AA KAR....

     
  4. Udan Tashtari on September 2, 2009 at 4:19 PM

    फिर कितने लठ्ठ पड़े रामप्यारी को..इतनी बदमाशी!! :)

     

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साँस लेते हुए भी डरता हूँ! ये न समझें कि आह करता हूँ! बहर-ए-हस्ती में हूँ मिसाल-ए-हुबाब! मिट ही जाता हूँ जब उभरता हूँ! इतनी आज़ादी भी ग़नीमत है! साँस लेता हूँ बात करता हूँ! शेख़ साहब खुदा से डरते हो! मैं तो अंग्रेज़ों ही से डरता हूँ! आप क्या पूछते हैं मेरा मिज़ाज! शुक्र अल्लाह का है मरता हूँ! ये बड़ा ऐब मुझ में है 'yaro'! दिल में जो आए कह गुज़रता हूँ!
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