अहसास रिश्‍तों के बनने बिगड़ने का !!!!

एक चटका यहाँ भी

नमस्कार जी आप सब को!

मै बोदूराम आप सब का स्वागत करता हु आज फिर से . हुआ यु कि बीच में दो दिन के लिए नेता मजबूतीराम ने इस ब्लॉग पर कब्जा कर लिया था . लेकिन अब I am Back!!!!

बात कुछ यु हुआ कि मुझे ताऊ आश्रम   वापस आये काफी दिन बीत गए थे और काम धंधा कुछ मिल नहीं रहा था तो मै किसी तरह हाथ पाँव चलाकर एक स्कूल में नौकरी हथिया ली थी लेकिन तकलीफ ये था कि मैनेजर बहूत खडूस निकला दिर्फ़ ५०० रुपये महीने का देता है .
मै किसी तरह २ महीने निकाला लेकिन ये पैसे तो मेरे पान सुपाड़ी के भी पूरे नहीं पड़ते थे .

एक दिन मै ताऊ जी को फोनिया कर उपाय पूछा , ताऊ जी ने जो बताया आप भी पढ़ लो जी !!!

मै स्कूल में बच्चो को गंगा नदी के बारे में बता रहा था . मै बोला बच्चो गंगा जी हिमालय से निकलकर पहाडी रास्तो से होती हुई बनारस में आकर समाप्त हो जाती है .

मैनेजर पास से ही जा रहा था सुन लिया पास आया और बोला - अबे मास्टर के बच्चे गंगा नदी बनारस के आगे नहीं जाती .
बस क्या था मुझे भी मौका मिल गया मै बोला - अबे ओये मैनेजर के बच्चे , ५०० रुपये में तो मै गंगा नदी को यहाँ तक ही ला सकता हूँ अगर आगे बढावाना है तो पैसा बढा.
मैनेजर भी गुस्से में बोला अबे मै दूसरा मास्टर लाउगा
मै बोला इतने पैसे में तो दूसरा मास्टर अलाहाबाद तक ही ला पायेगा .

अब दुःख भरी खबर ये है कि नौकरी गयी .
खुशी कि खबर ये है कि जनगणना करने की नौकरी डा. अरविंद मिश्रा जी ने आफर किया है वहा क्या होगा कल पढिये .

शुभ दिन!!!

2 comments:

  1. सतीश पंचम on August 28, 2009 at 8:47 PM

    मिले हुए पैसों में से कुछ तो भागिरथ जी को कमीशन भी देना पडेगा, तभी तो वह गंगा जी के वहां तक पहुंचने की तस्दीक करते कागज पर हस्ताक्षर करेंगे :)

    बढिया तुक भिडाया है। मजेदार।

     
  2. दिगम्बर नासवा on August 30, 2009 at 6:18 PM

    500 mein gangaa ji ek shaher se duere shaher aa jaayen to kamaal ho jaayega ........ bhai bodoo raam ko municipality waale rakh lenge ....

     

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साँस लेते हुए भी डरता हूँ! ये न समझें कि आह करता हूँ! बहर-ए-हस्ती में हूँ मिसाल-ए-हुबाब! मिट ही जाता हूँ जब उभरता हूँ! इतनी आज़ादी भी ग़नीमत है! साँस लेता हूँ बात करता हूँ! शेख़ साहब खुदा से डरते हो! मैं तो अंग्रेज़ों ही से डरता हूँ! आप क्या पूछते हैं मेरा मिज़ाज! शुक्र अल्लाह का है मरता हूँ! ये बड़ा ऐब मुझ में है 'yaro'! दिल में जो आए कह गुज़रता हूँ!
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