अहसास रिश्‍तों के बनने बिगड़ने का !!!!

एक चटका यहाँ भी

उम्मीद घटती चली गयी

by Mishra Pankaj | 3:46 PM in |

इस तरह राहे मंजील गुम होती गयी,
होठो पे आयी हँसी कम होती गयी ,
पहले तो ये सोचके जिंदा थे ,
कि मिलेगे यार से,
अब जालीम के इस बेवफाई से,
उम्मीद घटती चली गयी.

3 comments:

  1. ताऊ रामपुरिया on July 10, 2009 at 3:49 PM

    बहुत हार्दिक बधाई. शुभकामनाएं.

    रामराम.

     
  2. anil on July 11, 2009 at 1:46 AM

    बह्हुत बहुत बधाई

     
  3. कडुवासच on July 16, 2009 at 4:40 AM

    ... प्रभावशाली रचना !!!

     

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साँस लेते हुए भी डरता हूँ! ये न समझें कि आह करता हूँ! बहर-ए-हस्ती में हूँ मिसाल-ए-हुबाब! मिट ही जाता हूँ जब उभरता हूँ! इतनी आज़ादी भी ग़नीमत है! साँस लेता हूँ बात करता हूँ! शेख़ साहब खुदा से डरते हो! मैं तो अंग्रेज़ों ही से डरता हूँ! आप क्या पूछते हैं मेरा मिज़ाज! शुक्र अल्लाह का है मरता हूँ! ये बड़ा ऐब मुझ में है 'yaro'! दिल में जो आए कह गुज़रता हूँ!
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