इस तरह राहे मंजील गुम होती गयी,
होठो पे आयी हँसी कम होती गयी ,
पहले तो ये सोचके जिंदा थे ,
कि मिलेगे यार से,
अब जालीम के इस बेवफाई से,
उम्मीद घटती चली गयी.
एक चटका यहाँ भी
3 comments:
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ताऊ रामपुरिया
on
July 10, 2009 at 3:49 PM
बहुत हार्दिक बधाई. शुभकामनाएं.
रामराम. -
anil
on
July 11, 2009 at 1:46 AM
बह्हुत बहुत बधाई
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कडुवासच
on
July 16, 2009 at 4:40 AM
... प्रभावशाली रचना !!!
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